एक बार एक आदमी, किसी काम से मुखिया के घर आया। मुखिया जी घर में नहीं थे। तब मुखिया के नौकर ने उस आदमी को मेहमान कक्ष में बैठाया। वह आदमी ख़ाली हाथ आया था। तो उसने सोचा कि कुछ उपहार देना अच्छा रहेगा। तो उसने वहीं दीवार पर टंगी एक तस्वीर (painting) उतारी। और जब मुखिया घर आया। तो उसने वही तस्वीर मुखिया को देते हुए कहा ,यह मैं आप के लिए लाया हूं।
मुखिया तस्वीर देखते ही पहचान गया कि ये मेरी ही तस्वीर है। अपनी ही चीज, उस आदमी के हाथों उपहार के रूप में पाकर मुखिया सन्न रह गया और मन ही मन सोचा कि “कितना मूर्ख आदमी है “मेरा मुझ को ही दे रहा है।”
कथामर्म: दुनिया में जो कुछ भी है वो उपर-वाले का दिया हुआ ही है इसलिए उन्हें हमारे चढ़ावे से कोई फर्क नहीं पड़ता। अगर आपको चढ़ावा ही चढ़ाना है तो जरुरतमंदो में चढ़ा दीजिए।